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Sona aur Khoon (Bhaag -2)
Sona aur Khoon (Bhaag -2)

Sona aur Khoon (Bhaag -2) in Bloomington, MN

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वही सख्त सर्दी थी। पेरिस गहरे कुहरे में डूबा हुआ था। मार्च का महीना था। उन दिनों पेरिस में सन्नाटा छाया हुआ था। यद्यपि अब दस बज चुके थे, पर सड़कों पर इक्को-दुक्के ही आदमी नजर पड़ते थे। गली-कूचे सुनसान थे। लोगों के मुँहपर हवाइयों उड़ रही थी। लुई की हत्या के बाद यूरोप-भर फ्रांस का दुश्मन हो गया था और यूरोप की शक्तियों ने उसे चारों ओर से घेर रखा था। इग्लैंड ने तो उसके कई इलाके दबोच लिये थे। स्पेन की सेनाएँ बड़ी चली आ रही थी। हालैंड और प्रशिया ने उत्तरी फ्रांस में मोर्चे बनाए हुए थे। राइन नदी से अस्कोट तक ढाई लाख तलवारें फ्रांस के नवजात प्रजातंत्र के विरुद्ध स्विची हुई थीं। फ्रांसीसी सेनाएँ घोर संकट में थीं। ये सब तरफ शार ती हार रही थीं। प्रत्येक दिशा से हार की स्वबरें पेरिस में आ रही थीं। सिपाही फटेहाल लीट रहे थे।
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